मेरी कहानी सुनो , "जियो और जीने दो"
लेख प्रस्तुती -करूणा शंकर
जीव के अस्तित्व में आने के समय से ही पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधों का मानव जीवन से अधिक घनिष्ठ संबंध रहा है एक के लुप्त होने अथवा विनिष्ट होने के बाद दूसरे के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। विगत कुछ दशकों से पर्यावरण का यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है भौतिक सुख सुविधा को अधिक से अधिक अपने पास जमा करने की अदूरदर्शिता भरी सोच के चलते मानव अपने जीवन के सूत्र सिद्धांतों की अवहेलना करने की नासमझी करता ही जा रहा है ।जिसका परिणाम है कि तमाम तरह की प्राकृतिक विपदाओं की भयावह स्थिति सारी दुनिया के सामने आसन्न हो रही है| इसीलिए तो प्रकृति का उद्घोष जीवन सूत्र " जियो और जीने दो" माना गया है।
सुनो मेरी कहानी
मैं मारीशस के जंगल में निवास करने वाला एक पक्षी डोडा हूं ।मेरा निवास कैलवेरिया के पेड़ों पर हुआ करता है। मैं उड़ नहीं सकता ।आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व मेरे इसी ने उड़ने की मजबूरी का फायदा उठाते हुए शिकारियों ने मेरे परिवार को मारना शुरू कर दिया। हालत यहां तक पहुंची कि मैं दुनिया से लुप्त होने की कगार पर पहुंच गया मेरे लुप्त होते ही मारीशस में कैलवेरिया पेड़ों की संख्या भी घट गई और सिर्फ 15 पेड़ ही दुनिया में शेष बचे वैज्ञानिकों को चिंता हुई डोडा पक्षी और कैलवेरिया वृक्ष लुप्त क्यों हुऐ।विशकासिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर एस स्टेनले ने खोज मे पाया कि कैलवेरिया के बीज के ऊपर कड़े छिलके का कवर चढ़ा होता है। जो नमी को अंदर से रोकता है जिसके कारण बीज अंकुरण की क्रिया संपन्न नहीं हो पा रही है। और यह क्रिया डोडा पक्षी के बगैर संभव ही नहीं हो सकती। क्योंकि डोडा पक्षी के अंतड़ियों में कुछ पत्थर पड़े रहते हैं,ऐसा इसलिए क्योकि डोडा जब अंडे से बाहर आता है तो उसकी माँ उसे सबसे पहले पत्थर के महीन कंणो का आहार चुगाती है जो ताजीवन उसके पेट मे पडा रहता है।और जब डोडा पक्षी केलवेरिया के बीजों को खाता है तो उसके पेट में पत्थर और अम्ल के बीच एक रासायनिक क्रिया होती है जिसके साथ कैलवेरिया बीज का ऊपरी आवरण घिसकर पतला हो जाता है और पक्षी के पेट से बीट के साथ बाहर निकलकर मिट्टी की नमी में पड़कर बीज अंकुरण की क्रिया शुरू करता है| जिससे नए कैलवेरिया वृक्ष तैयार होकर वंश वृद्धि करते हैं ।इस शोध के बाद खोज करने पर बचे 4 मेरे वंशजों को जंगल में कैलवेरिया बीज खिला कर उस पेड़ की वंशावली के साथ मेरी वंशावली की रक्षा का अभियान चलाया गया। जिसके बाद मारीशस ने मुझे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया|
आप सब अपनी सोच बदलो क्योकि---
प्रकृति अपनी खुद की संचालित व्यवस्था द्वारा जीवों को पैदा करती और मारती है सृजन और ध्वंश कि इस प्रक्रिया में मानवीय हस्तक्षेप किसी भी तरह से जीव जगत के हित में नहीं है तभी तो प्रकृति का उद्घोष जीवन सूत्र "जियो और जीने दो" है । जो जीव जगत के अस्तित्व का मूल सूत्र है।
लेख प्रस्तुती -करूणा शंकर
जीव के अस्तित्व में आने के समय से ही पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधों का मानव जीवन से अधिक घनिष्ठ संबंध रहा है एक के लुप्त होने अथवा विनिष्ट होने के बाद दूसरे के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। विगत कुछ दशकों से पर्यावरण का यह संतुलन बिगड़ता जा रहा है भौतिक सुख सुविधा को अधिक से अधिक अपने पास जमा करने की अदूरदर्शिता भरी सोच के चलते मानव अपने जीवन के सूत्र सिद्धांतों की अवहेलना करने की नासमझी करता ही जा रहा है ।जिसका परिणाम है कि तमाम तरह की प्राकृतिक विपदाओं की भयावह स्थिति सारी दुनिया के सामने आसन्न हो रही है| इसीलिए तो प्रकृति का उद्घोष जीवन सूत्र " जियो और जीने दो" माना गया है।
सुनो मेरी कहानी
मैं मारीशस के जंगल में निवास करने वाला एक पक्षी डोडा हूं ।मेरा निवास कैलवेरिया के पेड़ों पर हुआ करता है। मैं उड़ नहीं सकता ।आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व मेरे इसी ने उड़ने की मजबूरी का फायदा उठाते हुए शिकारियों ने मेरे परिवार को मारना शुरू कर दिया। हालत यहां तक पहुंची कि मैं दुनिया से लुप्त होने की कगार पर पहुंच गया मेरे लुप्त होते ही मारीशस में कैलवेरिया पेड़ों की संख्या भी घट गई और सिर्फ 15 पेड़ ही दुनिया में शेष बचे वैज्ञानिकों को चिंता हुई डोडा पक्षी और कैलवेरिया वृक्ष लुप्त क्यों हुऐ।विशकासिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर एस स्टेनले ने खोज मे पाया कि कैलवेरिया के बीज के ऊपर कड़े छिलके का कवर चढ़ा होता है। जो नमी को अंदर से रोकता है जिसके कारण बीज अंकुरण की क्रिया संपन्न नहीं हो पा रही है। और यह क्रिया डोडा पक्षी के बगैर संभव ही नहीं हो सकती। क्योंकि डोडा पक्षी के अंतड़ियों में कुछ पत्थर पड़े रहते हैं,ऐसा इसलिए क्योकि डोडा जब अंडे से बाहर आता है तो उसकी माँ उसे सबसे पहले पत्थर के महीन कंणो का आहार चुगाती है जो ताजीवन उसके पेट मे पडा रहता है।और जब डोडा पक्षी केलवेरिया के बीजों को खाता है तो उसके पेट में पत्थर और अम्ल के बीच एक रासायनिक क्रिया होती है जिसके साथ कैलवेरिया बीज का ऊपरी आवरण घिसकर पतला हो जाता है और पक्षी के पेट से बीट के साथ बाहर निकलकर मिट्टी की नमी में पड़कर बीज अंकुरण की क्रिया शुरू करता है| जिससे नए कैलवेरिया वृक्ष तैयार होकर वंश वृद्धि करते हैं ।इस शोध के बाद खोज करने पर बचे 4 मेरे वंशजों को जंगल में कैलवेरिया बीज खिला कर उस पेड़ की वंशावली के साथ मेरी वंशावली की रक्षा का अभियान चलाया गया। जिसके बाद मारीशस ने मुझे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया|
आप सब अपनी सोच बदलो क्योकि---
प्रकृति अपनी खुद की संचालित व्यवस्था द्वारा जीवों को पैदा करती और मारती है सृजन और ध्वंश कि इस प्रक्रिया में मानवीय हस्तक्षेप किसी भी तरह से जीव जगत के हित में नहीं है तभी तो प्रकृति का उद्घोष जीवन सूत्र "जियो और जीने दो" है । जो जीव जगत के अस्तित्व का मूल सूत्र है।
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