आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने मौसम के अनुमान के लिए अनेक उपकरण विकसित कर लिए हैं। फसलों की बोआई और संरक्षण में किसानों को बड़ी राहत मिली है।लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब वैदिक पंचाग ही बारिश के पूर्वानुमान का एक मात्र आधार होते थे। कवि हृदय घाघ और भड्डरी ने तो पंचांग और जीव-जन्तुओं की गतिविधियों के आधार पर ही ऐसी कहावतें तक गढ़ दीं, जो युगों बाद भी प्रासंगिक मालूम पड़ती हैं।
गांवों में अब भी लोग इन कहावतों के आधार पर ही वर्षा का अनुमान लगाते हैं और इसी के हिसाब से योजना बनाते हैं। बारिश का मौसम जाने को है... आइए आपको महान वर्षा विचारक घाघ और भड्डरी की कहावतों से परिचित कराते हैं। दोनों ही इतने विद्धवान थे कि पशु-पक्षियों, हवा और बादलों के अंदाज से वर्षा का अनुमान लगा लेते थे, जो सटीक भी बैठता था -
मानसून जाने को लेकर कुछ कहावते
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दिन में गर्मी रात में ओस।
घाघ कहै वर्षा सौ कोस..।।
उक्त पंक्तियों में घाघ ने स्पष्ट भविष्यवाणी की है कि यदि दिन में गर्मी का आभाष होने लगा है और रात में घास पर ओस दिखाई देेने लगी है तो वर्षा विदाई ले चुकी हैं। यह निश्चित जानना चाहिए।
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उये अगस्त फूले वनकाशा ।
अब नाही बरखा कै आशा ।।
जब काश मे फूल आ जाये तो समझो बरसात बिदा ले चुकी है।
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