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दो दिवसीय बाल क्रीडा प्रतियोगिता सुलतानपुर मे शुरु

* सुलतानपुर 21 नम्बर/ बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय जनपदीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ एम.जी.ए...

Saturday, 1 September 2018

प्रेरक प्रसंग

सुप्रभात्
                     
                       प्रेरक प्रसंग
एक बार भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री एक अधिवेशन में सम्मिलित होने भुवनेश्वर गए. अधिवेशन में जाने से पहले वे जब स्नान कर रहे थे, तब दयाल महोदय उनके सूटकेस से उनका खादी का कुर्ता निकालने लगे. उनकी ये भावना थी कि शास्त्री जी का कपड़े ढूंढने में अधिक समय व्यर्थ न हो.

उन्होंने एक कुर्ता निकाला. देखा कि वह फटा हुआ था. उन्होंने वह कुर्ता ज्यों का त्यों तह करके वापस सूटकेस में रख दिया और उसमें से दूसरा कुर्ता निकाला. परन्तु ये देखकर वे चकित रह गए कि वह कुर्ता पहले वाले कुर्ते से भी अधिक फटा हुआ था और कई जगहों से सिला भी हुआ था.

उन्होंने शास्त्री जी के सारे कुर्ते देखे. कोई भी कुर्ता साबुत नहीं था. ये देख दयाल जी के अचम्भे की कोई सीमा नहीं रही. साथ ही वे परेशान भी हो गए कि अब शास्त्री जी क्या पहन कर अधिवेशन में जायेंगे.

जब शास्त्री जी स्नान कर बाहर आये, तो उन्हें दयाल जी की परेशानी का सबब पता चला. उन्होंने बड़ी ही सादगी से उन्हें समझाया, “इसमें चिंता की कोई बात ही नहीं है. अभी जाड़े का मौसम है. जाड़े में फटे और उधड़े कपड़े कोट के नीचे पहने जा सकते है.”

अधिवेशन के उपरांत शास्त्री जी कपड़े की एक मिल के भ्रमण पर गए. मिल मालिक ने उन्हें कई खूबसूरत साड़ियाँ दिखाई. शास्त्री जी ने साड़ियों को देखते हुए पूछा, “साड़ियाँ तो अच्छी है. पर इनकी कीमत क्या है?”

मिल मालिक ने उत्तर दिया, ”जी! एक महज आठ सौ रुपये की है और एक हजार की.”

इस पर शास्त्री जी बोले, “भाई! फिर तो ये बहुत महँगी है. मुझ जैसे गरीब के लायक कुछ साड़ियाँ दिखाइये.”

“आप कैसी बातें कर रहे है? आप गरीब कहाँ? आप तो देश के प्रधानमंत्री है. वैसे भी ये साड़ियाँ तो हम आपको भेंट करने वाले है.” मिल मालिक बोला.

“नहीं भाई! मैं देश का प्रधानमंत्री अवश्य हूँ. किन्तु गरीब हूँ. मेरा स्वाभिमान मुझे भेंट स्वीकार करने की अनुमति नहीं देता. आप मुझे मेरी हैसियत के मुताबित ही साड़ियाँ दिखाइये.” यह कहकर शास्त्री जी ने अपने हिसाब से सस्ती साड़ियाँ ही अपने परिवार के लिए खरीदी.

लाल बहादुर शास्त्री के सादगी पूर्ण विचारों के समक्ष दयाल जी नतमस्तक हो गये।

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