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Thursday, 30 August 2018

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बन्द हो ,वृक्षो को काटने से बचाये




प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बन्द हो,वृक्षों को कटने से बचाये,
लेख प्रस्तुती-करूणा शंकर तिवारी
पर्यावरण सन्तुलन में वृक्ष वनस्पतियों का अहम  योगदान है उतना प्रकृति के अन्य किसी भी घटक का नहीं है ।। दिन- प्रतिदिन वातावरण में घुलते जहर के परिशोधन तथा जीवन के परिपोषण के लिए उपयोगी तत्वों के अभिवर्धन में ये मूक पर सजीव संरक्षक की भूमिका निभाते हैं ।
मनुष्य की भौतिक समृद्धि में असाधारण  सहयोग करने वाली वृक्ष सम्पदा का तात्कालिआवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अंधाधुन्ध कटाई का एक दौर शुरू हुआ ।। उसके दूरवर्ती किन्तु महत्त्वपूर्ण परिणामों की उपेक्षा हुई ।। फलतः सम्पूर्ण इकॉलॉजिकल चक्र ही डगमगा गया जिसकी परिणति अनेकों प्रकार की विभीषिकाओं के रूप में सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रही हैं ।। मौसम में असामयिक हेर- फेर, अतिवृष्टि, अनावृष्टि जैसे कितने ही प्रकृति प्रकोप सन्तुलन के लिए अनिवार्य वृक्ष सम्पदा के नष्ट करने के ही दुष्परिणाम हैं।प्रकृति विक्षोपों की श्रृंखला में एक भयंकर कड़ी जुड़ी है भूस्खलन एवं भूक्षरण की ।। जिससे प्रतिवर्ष उपजाऊ भूसम्पदा का एक बड़ा भाग गँवाना पड़ रहा है ।। साथ ही असंख्यों व्यक्तियों को अपने जीवन से प्रति वर्ष हाथ धोना पड़ रहा है ।। विगत कुछ वर्षों से हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाओं में निरन्तर अभिवृद्धि हो रही है ।जिसका परिणाम पहाड़ों तक ही सीमित नही वरन समूचे  देश मे जल प्रलय जैसी स्थित बनती जा रही है ऐसा आप भी महसूस कर रहे होगे।आपके निकट बहने वाली जो भी नदी होगी उसका जल स्तर लगातार प्रति वर्ष  बढ़ने से कितना और किस स्तर का नुकसान  होता है उसका सहज अंदाजा भी आपको होगा।यह सिर्फ  वृक्ष वनस्पतियों की अंधाधुँध कटान के ही कारण है।बिगत कुछ वर्षों मे इसके  भयावह परिणाम की तरफ हम आपका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास  कर रहे है।
16 अगस्त 1979 की रात को चमोली जिले के कोथा गाँव में मूसलाधार वर्षा हुई ।। वर्षा के साथ हुए भूस्खलन से पूरा गाँव ही नीचे दब गया ।। श्मशान जैसी स्थिति बन गई ।अगस्त 1978 में हिमाचल प्रदेश में हुए एक भूस्खलन से लगभग तेरह सौ व्यक्ति मारे गये और सैकड़ों घायल हुए ।। इसी वर्ष अगस्त मे ही
जन्माष्टमी की मध्य रात्रि को पिथौरागढ़ जिले के शिशना गाँव के तीन सौ व्यक्ति जमीन के अचानक धँसने से भीतर दब गये ।। सैकड़ों पशु भी इस चपेट में मारे गये ।। उसी रात निकटवर्ती एक अन्य गाँव गाशिला में भी भूस्खलन में असंख्यों जानें गई ।। गाँव की खेती और बने घर बर्बाद हो गये ।। इस प्रकार 15 अगस्त 1977 को तवाधार क्षेत्र में पृथ्वी में दरार पड़ने से सैकड़ों व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई ।मौजूदा वर्ष 2018 और महीना अगस्त भी वही हिमाचल, उत्तरकाशी,चमोली मे भूस्खलन और मैदानी भाग की उफनाई गंगा,राप्ती,घाघरा,सरयू जैसी कितनी नदियों मे कितनो की जाने गयी कितने आशियाने जमीदोज हुये।इसका अंदाजा आपको समाचारो टीवी चैनलो से लगातार मिल रहा है।
इस भयावह स्थित पर शोध कर रहे विशेषज्ञो का  कहना है कि भारत की समृद्धि का महत्त्वपूर्ण स्रोत हिमालय संकट मे है।वह भूस्खलनों के रूप में अपना संकेत दे रहा है ।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालय की वृक्ष सम्पदा की कटाई रोकी न गई  और मैदानी भागो मे वृक्षो की कटान रोकने और वृक्षारोपड़ का ईमानदारी से प्रयास न हुआ तो देश को गम्भीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है ।पर्यावरण सन्तुलन के लिये भूभाग के एक तिहाई हिस्से में वृक्षों का होना अनिवार्य माना गया है ।। जबकि भारत में मात्र 29%से भी कम भू- भाग में वन हैं ।। प्रकृति के प्रकोपों बाढ़, सूखा, भूस्खलन, भूक्षरण, भूकम्प, की घटनाओं में इसी कारण वृद्धि होती जा रही है ।ऐसे मे पर्यावरण को बचाने का दायित्व सरकार के साथ हम सब का है।


नोट -इस लेख के  साथ हमने विभिन्न समाचार पत्रों मे प्राकाशित भू स्खलन से तबाही की फोटो  भी ड़ाली है जिससे आप वृक्षों के सुरक्षा की जरूरत महशूस कर सके।

कैसे करे सहयोग---
1-स्वयं कम से कम 10वृक्ष लगाये और उनकी देखभाल करे।
2-अवैध चल रही  अपने क्षेत्र  की आरामशीनो का फोटो शोसल मीड़िया पर सार्वजनिक करे।
3-आपके आस पास यदि पेड़ काटे जा रहे हो तो फोटो सार्वजनिक करे।जिससे  सरकार  उस पर रोक लगा सके।
 

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