खेती किसानी
सेम की उन्नतिशील खेती से कमाये अच्छा मुनाफा
प्रस्तुती-पप्पू सिंह (प्रगतिशील किसान हरौरा)
सेम ठंडी जलवायु की फसल है। इसके लिए उत्तम निकास वाली दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। अधिक क्षारीय और अधिक अम्लीय भूमि इसकी खेती में बाधक मानी गई है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या हल चलाएं प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं…
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बीज बुआई
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बोने का समय-अगेती फसल-फरवरी, मार्च। वर्षाकालीन फसल-जून जुलाई। रजनी नामक किस्म अगस्त के अंत तक बोई जाती है।
बीज की मात्रा – प्रति हेक्टेयर 6 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
दूरी – पंक्तियों और पौधों की आपसी दूरी क्रमश: 90 सेमी और 90 सेमी रखें। सेम को चौड़ी क्यारियों में बोएं। 1.5 मीटर की चौड़ी क्यारियां बनाएं उनके किनारों पर 50 सेमी की दूरी पर 2-3 सेमी की गहराई पर बीज बोएं।
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आर्गेनिक खाद
सेम की फसल की अच्छी उपज लेने के लिए उसमें आर्गेनिक खाद, कम्पोस्ट खाद का पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है। इसके लिए एक हेक्टेयर भूमि में 40-50 क्विंटल अच्छे तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद और आर्गेनिक खाद 2 बैग भू-पावर वजन 50 किलो ग्राम, 2 बैग माइक्रो फर्टी सिटी वजन 40 किलो ग्राम, 2 बैग माइक्रो नीम वजन 20 किलो ग्राम, 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन 10 किलो ग्राम, 2 बैग माइक्रो भू-पावर वजन 10 किलो ग्राम और 50 किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण बनाकर खेत में बुआई से पहले समान मात्रा में बिखेर लें और खेत की अच्छे तरीके जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुआई करें। और जब फसल 25-30 दिन की हो जाए तब उसमें 2 बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम और माइक्रो झाइम 500 मिली को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी प्रकार से मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर 15-20 दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिड़काव करें।
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सिंचाई
फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। वर्षाकालीन फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि वर्षा काफी समय तक न हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। फरवरी मार्च में 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए।
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तुड़ाई
जुलाई-अगस्त में बोई जाने वाली फसल में नवंबर-दिसंबर में फूल निकल आता है। फूल निकलने के 2-3 सप्ताह बाद फलियों की पहली तुड़ाई की जा सकती है। फलियों की तुड़ाई में देरी नहीं करनी चाहिए अन्यथा फलियां कठोर हो जाती हैं, जिसके कारण उनका बाजार में उचित भाव नहीं मिल पाता है, क्योंकि उनसे स्वादिष्ट सब्जी का निर्माण नहीं होता है।
उपज – इसमें प्रति हेक्टेयर 50-80 क्विंटल तक हरी फलियां मिल जाती हैं
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