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Monday, 26 November 2018

गाँव की कुम्हारी कला पर छा रहे हैं संकट के बादल

कंट्री लीडर न्यूज नेटवर्क सुलतानपुर
रिपोर्ट - निशार अहमद
सदियो से पर्यावरण को बचाने और देश की अर्थव्यवस्था मे ग्रामीण हस्त कला उद्योगो की अहम भूमिका रही है ।ऐसे अनेक उद्योगो मे कुम्हारी कला भी रही जिससे बडी संख्या मे लोगो को रोजगार मिला था। लोग मिट्टी के बहुउपयोगी सामानो के निर्माण और बिक्री  वयवसाय से अपनी आजीविका चलाते रहे । लेकिन  आधुनिकता  के चलते इस व्यवसाय  को गहरी चोट लगी है।


मशीनों से बने कागज और फाईबर से बने गिलास  ,दोना,पत्तल,धातुओ से बने ट्रकं की बढती माग से जहाँ यह व्यवसाय प्रभावित हुआ वही इस व्यवसाय को चलाने के लिये जरूरी मिट्टी जैसे संशाधनो के निरंतर अभाव ने तो इस व्यवसाय की कमर ही तोड दी है।मिट्टी की कमी कुल्हड़ों की मांग की अपेक्षा आपूर्ति में बाधक बन गई। हालात यह हैं कि कुल्हड़ बनाने की मिट्टी के लिए कुम्हारों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। ग्राम पंचायत भरथी के कुम्हार परिवारों से इस व्यवसाय मे आ रही दिक्कत के बाबत जानकारी चाही गयी तो  सियाराम 

ने बताया कि इस पुस्तैनी वयवसाय मे दो दशक पहले तक संभावनाऐ बहुत थी ,मैने वर्ष 1998 मे आई टी आई की थी ,उस समय इसी पुस्तैनी वयवसाय से पूरे परिवार का भरण पोषण हो जाता था हमने इसी को अपना वयवसाय बना लिया कोई नौकरी नही की मिट्टी के लिये पट्टा मिला था वह भी कैंसिल हो गया सबसे बडी समस्या अब मिट्टी की है ।
तो दूसरी तरफ बाजार भी नही रही लोग ज्यादा तर फाईबर के बर्तनो का इस्तेमाल कर रहे है।हालत यह हो गयी है कि पेट पालना भी कठिन हो रहा है।बच्चे तो इससे पूरी तरह मुँह मोड चुके है क्योंकि उनको इस व्यवसाय मे अपना भविष्य नजर नही आ रहा है।सरकार भी इस व्यवसाय के उन्नयन के लिये कोई ठोस पहल नही कर रही है।जबकि गाव का यह व्यवसाय रोजगार तो देता ही है साथ साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखने मे भी मदतगार है।सरकार ने इस व्यवसाय को बचाने की कोई ठोस पहल न की तो यह व्यवसाय पूरी तरह ठप हो जायेगा और हमारा समाज पूरी तरह बेरोजगार हो जायेगा ।

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