कंट्री लीडर न्यूज नेटवर्क सुलतानपुर
चने की फसल को फली छेदक कीट सर्वाधिक क्षति पहुंचाता है। किसान को इसकी जानकारी बहुत लेट हो पाती है। तब तक सूड़ी बड़ी होकर चना की फसल को 5 से 7 प्रतिशत तक क्षति पहुंचा चुकी होती है।उक्त् जानकारी देते हुए नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र बरासिन के अध्यक्ष प्रो.रवि प्रकाश मौर्य
चना की खेती किये हुए किसानों को सलाह दिया, कि फेरोमोन् जाल से चना फली छेदक के प्रकोप का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है, जिससे समय से फसल को क्षति से बचाया जा सकता है
। इस जाल को डंडे से खेत में फसल से दो फीट की ऊंचाई पर बाधा जाता है। प्रो.मौर्य ने बताया कि चना की फसल में इस जाल का प्रयोग 4-5 जाल प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए व जाल में फंसे चना फली छेदक के नर पतंगे की नियमित निगरानी करनी चाहिए। जब औसतन 4-5 नर पतंगे प्रति( गंधपास ) जाल लगातार 2-3 दिनो तक दिखाई देने लगे तो नियंत्रण करना आवश्यक हो जाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिये जैविक कीटनाशी एच एन.पी.वी.250 -300 एलई, 250-300 लीटर पानी या बीटी कसर्ट प्रजाति एक किलोग्राम प्रति 500-600 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव सायं काल सूर्यास्त के समय करनी चाहिये। यदि यह जैविक कीटनाशी उपलव्ध न हो तभी रसायन कीटनाशको का प्रयोग करे.।इसके लिये फेनवेलरेट 20 प्रतिशत ई.सी. एक लीटर या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 2 लीटर को 500-600 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करे।
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