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दो दिवसीय बाल क्रीडा प्रतियोगिता सुलतानपुर मे शुरु

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Saturday, 5 August 2023

आजादी के दीवाने

धनपतगंज। भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने वाले क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का, गांव और परिवार प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो गया है। ब्रितानी हुकूमत की यातनाएं सहने वाले सपूतों के गांव में उनकी कोई स्मृति शेष नहीं है। 
   विकास क्षेत्र के  सेनानी रहे भगवती प्रसाद, रणछोरटीकम,रामबली मिश्र,संतराम,सूबेदार सिंह, गंगाप्रसाद, रामराज द्विवेदी,चंद्र प्रताप सिंह
पं अवध बिहारी  विभिन्न गांव से कुल 8 देशभक्तों ने आजादी के लिए किन्ही न किन्ही रूपों में अपना योगदान दिया था ।और ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ खुली बगावत कर क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हुए थे ।कई वर्षों की जेल की तनहाई भी काटी,यातनाएं भी सही। आजादी के बाद धीरे-धीरे भारत माता के  सपूतों को शासन प्रशासन भी भूलता गया। मुफलिसी के दौर से गुजर रहे उनके वंशजों को अब तो छोटी से छोटी जरूरत के लिए तरसना पड़ रहा है। उनके नाम पर उनके गांव में यादगार स्थल बनाने और उनके दरवाजों तक पक्का मार्ग बनाने की सरकारी घोषणा भी झूठी साबित हुई। देखा जाय  तो धीरे-धीरे उनकी स्मृति भी शेष नहीं है । पीरो सरैया (कनकपुर शिकवा) के चंद्र प्रताप सिंह 14 वर्ष की उम्र में पहली बार सन 1931 में इलाहाबाद जेल में 3साल  6 माह की जेल काटी ।जेल से बाहर आने के बाद दोबारा 15 दिन के लिए जेल भेजे गए। भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी निभाते हुए उन्हें 1942 में 1 वर्ष 8 माह के लिए नजरबंद रखा गया। 1996 में उनकी मृत्यु हो गई। उनके दो बेटे गांव में आज भी बेरोजगार बने हैं। कोई सरकारी सहयोग नहीं मिला ।पिता की याद करते हुए शैलेन्द्र सिंह कहते हैं कि, पिता की याद में गांव में उनके नाम से कोई स्मृति चिन्ह तक नहीं बनवाया गया।। जिला प्रशासन भी उनके परिवार को भूल गया।
 इसी क्षेत्र के  कुट्टा गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे पंडित अवध बिहारी मिश्र कानपुर में पढ़ाई के दौरान गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े ।कई बार बरेली, उन्नाव, कानपुर ,की जेलों में नजरबंद किए गए और यातनाएं सही ।वर्ष 1995 में उनकी मृत्यु के बाद परिवार मुफलिसी में फंसा। बेटा प्रेमानंद मजदूरी से गुजारा करने लगा। परिवार की जरूरतें पूरी न हो सकी तो गांव की जमीन बेचकर कानपुर मजदूरी करने चला गया। जो आज तक गांव नहीं लौटा ।गांव में स्मृति शेष है तो सेनानी की सड़क के गड्ढे में बची टूटी समाधि।
 गुलामी की  जकडी जंजीर से भारत माता को आजाद कराने मे योगदान देने वाले क्षेत्र के फत्तेपुर निवासी भगवती प्रसाद पांडे और उनके बेटे रणछोर टीकम दोनो ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे।रणछोर18वर्ष की उम्र मे आजादी के जंग मे कूदे जो भारत छोडो आंदोलन विदेशी वस्तुवहिष्कार जैसे आंदोलनों मे सक्रिय रहे और कई बार रायबरेली और सुलतानपुर की जेल मे  कुल मिला कर 3वर्ष  तक जेल की यातना सही ।रणछोर टीकम की मृत्यु1997मे हुई।पिता और पुत्र की समाधि परिवार वालो ने बनाई जो चंदौर कुट्टा मार्ग पर झाडियों मे अपनी पहचान खोती जा रही है। रणछोर टीकम के नाती भूपेन्द्र कहते है कि अब तो 15अगस्त और 26जनवरी के अवसर पर जिला प्रशासन भी याद करना भूल गया है।पिता और पुत्र  के नाम पर गांव मे टूटी फूटी समाधि के अलावा अन्य कोई स्मृति चिंह नही है। दरवाजे. तक पक्की सडक तक नही बन सकी।
ऐसे वीर सपूतो के उनके देश के लिये किये गये योगदान की सरकारी उपेक्षा पर शायद यह लाईने फिट बैठती हैं कि 
मेरे आंगन मे सावन बरसता रहा ।
हम तरसते रहे आचमन के लिये।।


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