*सावन मे करें तिलभाडेश्वर शिवलिंग
के दर्शन मिलेगी पापों से मुक्ति*
कंट्री लीडर न्यूज नेटवर्क वाराणसी
रिपोर्ट -हनुमान तिवारी
शिव की नगरी काशी के कण-कण में शिव का वास है। यहां शिव के अनेक रूप भी हैं। शिव ही यहां के आराध्य हैं और शिव ही लोगों की रक्षा और भरण पोषण करते हैं। शिव के इस आनंद वन में शिव के चमत्कारों की कोई कमी नहीं है। यहां बाबा भैरव रूप में रक्षा करते हैं तो द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ तारक मंत्र से तारते हैं।
इन रूपों के आलावा महादेव का एक और रूप हैं जो काशी में वास करता है और हर साल अपनी उपस्थिति से सबको आश्चर्य में डालते हैं। इन्हें तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है ।जो हर साल एक तिल के बराबर बढ़ते हैं। सावन में तिलभाण्डेश्वर के दर्शन के लिए भक्तों का जमावड़ा लगता है।काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में बाबा तिलभांडेश्वर का प्राचीन मंदिर है। ये मन्दिर काशी के केदार खंड में स्थित है। इस मन्दिर की मान्यता ये है कि बाबा तिलभाण्डेश्वर स्वयंभू हैं। किवदंतियों के मुताबिक भगवान शिव का ये लिंग मकर संक्रांति के दिन एक तिल के आकार में बढ़ता है। इसका ज़िक्र शिव पुराण धर्म ग्रन्थ में भी मिलता है। मंदिर के निर्माण को लेकर कोई जानकारी किसी को नही है। सतयुग से लेकर द्वापर युग तक यह लिंग हर रोज एक तिल बढ़ता रहा ।
लेकिन कलयुग मे यह शिवलिंग प्रति वर्ष एक तिल ही बढता है।तिलभाण्डेश्वर महादेव का आकार काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है और हर वर्ष इसमें तिल भर की वृद्धि होती है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। मान्यता है कि तभी से इन्हें तिलभाण्डेश्वर कहा जाता है।इस शिवलिंग पर तिल और बेलपत्र चढाने पर शनिदोष भी खत्म होता है।